अर्थ : पाणिनीय व्याकरण में गुण, वृद्धि, प्रत्याहार आदि के लिए उपयोगी एक सांकेतिक वर्ण, जो धातु, प्रत्यत आदि में रहता है पर उसका लोप हो जाता है।
उदाहरण :
माहेश्वरी सूत्र के ण्, ञ्, ङ् आदि अनुबंध कहलाते हैं।
अन्य भाषाओं में अनुवाद :