अर्थ : शरीर में की वह वायु जो पलकों को खोलती तथा बंद करती है।
उदाहरण :
कूर्म के अभाव के कारण वह अपलक देखता रहता है।
अर्थ : हठयोग के अनुसार शरीर की तीन प्रमुख नाड़ियों में से एक जिसका स्थान वैद्यक में नाभि के मध्य माना जाता है।
उदाहरण :
सुषुम्ना को ब्रह्मरंध्र तक गई हुई मानी जाती है।
पर्यायवाची : अग्नि, कूर्म नाड़ी, महापथ, सुषुम्ना, सुषुम्ना नाड़ी